कविता: गुरू शिष्य
सारांश:
"गुरु शिष्य" की......!
इस कथा से, दो बातों
का, मिलता, ज्ञान।
पहली है, गुरु महिमा,
और दूसरी है, प्यार के रुझान।
राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता
404/13, मोहित नगर
देहरादून
****************************** *
गुरू शिष्य
गुरु का एक शिष्य था,
बड़ा ही, आज्ञा कारी।
गुरु की सेवा से, उसे,
खुशी, मिलती थी, भारी।
------------------------------ ------------------
नित्य प्रवचन सुनने,
गुरु के द्वार, वो,
जाता................!, था।
गुरु सेवा में, मन,
श्रद्धा से अपना,
लगता...............!, था।
------------------------------ ------------------
दिन चर्या ये उसकी,
वर्षों से थी, ज़ारी।
फिर अचानक............!,
किस्मत ने, पलटी, मारी।
माँ बाप ने, उसके लीये,
लड़की एक, देख, डाली।
------------------------------ ------------------
उस लड़की के साथ,
हो गयी उसकी, सगाई।
अगले दिन, शिष्य ने,
ये बात, प्रवचन के
बाद, गुरु को, बताई।
------------------------------ ------------------
गुरु ने कहा,
तू मेरे से, गया, भाई।
शिष्य को ये बात,
समझ नहीं, आई।
****************************** *
धीरे धीरे, शादी वाला,
दिन भी आ, गया।
वो, शादी उसकी करा, गया।
------------------------------ ------------------
अगले दिन, ये बात,
उसने, फिर गुरु को, बताई।
गुरु ने कहा, तू अपने,
माँ बाप से, गया, भाई।
शिष्य को ये बात भी,
समझ नहीं, आई।
****************************** *
कुछ महीनों बाद, शिष्य
आया, गुरु के, द्वार।
जीवन की, खुशियाँ जो,
उसे, मिल गयी थी, अपार।
------------------------------ ------------------
खुशी से, आसमान में,
उड़ रहा था, वो।
बेटे का बाप, जो,
बन गया था, वो।
------------------------------ ------------------
ये बात भी उसने,
गुरु को, बताई।
गुरु ने कहा, तू अपने
आप से गया, भाई।
शिष्य को ये बात भी,
समझ नहीं, आई।
****************************** *
आखिर उसने मन में,
आज़, लिया ये, ठान।
गुरु ने, क्यों कहा, ऐसा,
क्या है, उनका, भान।
------------------------------ ------------------
गुरू से लेगा, तीनों,
बातों का, वो, ज्ञान।
तब, प्रश्न, गुरु से पूछा,
उसने ये, बन, अन्जान।
------------------------------ ------------------
तीनो बातों में, क्या,
छुपा हुवा है, राज़।
कृपया खुल कर,
बता दो, गुरूजी, आज़।
****************************** *
गुरूजी बोले सुन बेटा,
सगाई जब तेरी, हुई।
------------------------------ ------------------
तब मुझ से ज़्यादा,
लड़की की याद,
तुझे..................!, आवेगी।
वो याद तुझे,
मुझ से दूर, भगावेगी।
------------------------------ ------------------
इस लिये कहा, तू,
मुझ से गया, भाई।
****************************** *
गुरूजी फिर बोले,
शादी जब तेरी, हुई।
------------------------------ ------------------
तू, माँ बाप से ज्यादा,
लड़की के,
प्यार में, डूब, जावेगा।
वो प्यार तुझे,
माँ बाप से दूर, भगावेगा।
------------------------------ ------------------
इस लिये कहा, तू,
माँ बाप से गया, भाई।
****************************** *
गुरूजी फिर बोले,
और जब, तेरे बच्चे
की, बारी, आई।
------------------------------ ------------------
तू, अपनी...............!,
जान से ज्यादा,
बच्चे को प्यार कर, जावेगा।
------------------------------ ------------------
बाज़ार में, गर्, अकेले तू,
कुछ ख़ाना, चाहवेगा।
तो, बच्चा तुझे, याद,
आ...................!, जावेगा।
------------------------------ ------------------
तू, कुछ भी, खा, नहीं, पावेगा।
बच्चे के ऊपर तू, दुनिया
की हर खुशी,
न्योछावर कर, जावेगा।
------------------------------ ------------------
तू, उसके प्यार में,
दुनिया के साथ,
साथ, अपने को
भी, भूल, जावेगा।
वो प्यार तुझे,
खुद से दूर, कर, जावेगा।
------------------------------ ------------------
इस लिये कहा तू,
अपने आप से
भी, गया, भाई।
शिष्य को ये बात,
अब समझ में, आई।
------------------------------ ------------------
गुरु के, ज्ञान की,गंगा में,
डुबकी भी,
आज़ उसने, लगाई।
धन्य हो गया, वो, आज़,
उसके जीवन में,
खुशियाँ, जो ढेर, आई।
****************************** *
कहता है, राजेन्द्र.......!!!
"गुरु शिष्य" की......!
इस कथा से, दो बातों
का, मिलता, ज्ञान।
पहली है, गुरु महिमा,
और दूसरी है, प्यार के रुझान।
****************************** *
पहली.......!, गुरु महिमा~
कहे राजेन्द्र..............!,
गुरु होते, बड़े ही ज्ञानी,
अज्ञान के, अँधेरे
को, दूर करते, ऐसे।
घोर अँधेरे में, कोई,
दीपक जला दे, जैसे।
------------------------------ ------------------
पोथी पढ़, पंडित बने,
गुरु बिन, मिले न, ज्ञान।
ज्ञान बिन, मुक्ति न मिले,
गुरु महिमा का,ये है, बखान।
****************************** *
दूसरी.!, प्यार के रुझान~
कहे राजेन्द्र..............!,
प्यार के, अलग अलग,
रुझानों को, बताती।
अंत में, माँ बाप के,
प्यार को, समझाती।
------------------------------ ------------------
माँ बाप,अपने बच्चों से,
अपनी जान से,
ज़्यादा, करते, प्यार।
इस प्यार का,नहीं होता,
कोई आर, पार।
समुद्र से गहरा, और,
आसमान से ऊँचा,
होता उनका, प्यार।
------------------------------ ------------------
गुरु ने भी, शिष्य को,
ऐसी ही बातें,बताई, ज्ञान की।
वो तो हैं, बड़े ज्ञानी,
बातें करते, बड़े, काम की।
प्रेम से बोलो, जै श्री, राम की।
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कविता: राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता
404/13, मोहित नगर
देहरादून
सारांश:
"गुरु शिष्य" की......!
इस कथा से, दो बातों
का, मिलता, ज्ञान।
पहली है, गुरु महिमा,
और दूसरी है, प्यार के रुझान।
राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता
404/13, मोहित नगर
देहरादून
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गुरू शिष्य
गुरु का एक शिष्य था,
बड़ा ही, आज्ञा कारी।
गुरु की सेवा से, उसे,
खुशी, मिलती थी, भारी।
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नित्य प्रवचन सुनने,
गुरु के द्वार, वो,
जाता................!,
गुरु सेवा में, मन,
श्रद्धा से अपना,
लगता...............!, था।
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दिन चर्या ये उसकी,
वर्षों से थी, ज़ारी।
फिर अचानक............!,
किस्मत ने, पलटी, मारी।
माँ बाप ने, उसके लीये,
लड़की एक, देख, डाली।
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उस लड़की के साथ,
हो गयी उसकी, सगाई।
अगले दिन, शिष्य ने,
ये बात, प्रवचन के
बाद, गुरु को, बताई।
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गुरु ने कहा,
तू मेरे से, गया, भाई।
शिष्य को ये बात,
समझ नहीं, आई।
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धीरे धीरे, शादी वाला,
दिन भी आ, गया।
वो, शादी उसकी करा, गया।
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अगले दिन, ये बात,
उसने, फिर गुरु को, बताई।
गुरु ने कहा, तू अपने,
माँ बाप से, गया, भाई।
शिष्य को ये बात भी,
समझ नहीं, आई।
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कुछ महीनों बाद, शिष्य
आया, गुरु के, द्वार।
जीवन की, खुशियाँ जो,
उसे, मिल गयी थी, अपार।
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खुशी से, आसमान में,
उड़ रहा था, वो।
बेटे का बाप, जो,
बन गया था, वो।
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ये बात भी उसने,
गुरु को, बताई।
गुरु ने कहा, तू अपने
आप से गया, भाई।
शिष्य को ये बात भी,
समझ नहीं, आई।
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आखिर उसने मन में,
आज़, लिया ये, ठान।
गुरु ने, क्यों कहा, ऐसा,
क्या है, उनका, भान।
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गुरू से लेगा, तीनों,
बातों का, वो, ज्ञान।
तब, प्रश्न, गुरु से पूछा,
उसने ये, बन, अन्जान।
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तीनो बातों में, क्या,
छुपा हुवा है, राज़।
कृपया खुल कर,
बता दो, गुरूजी, आज़।
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गुरूजी बोले सुन बेटा,
सगाई जब तेरी, हुई।
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तब मुझ से ज़्यादा,
लड़की की याद,
तुझे..................!, आवेगी।
वो याद तुझे,
मुझ से दूर, भगावेगी।
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इस लिये कहा, तू,
मुझ से गया, भाई।
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गुरूजी फिर बोले,
शादी जब तेरी, हुई।
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तू, माँ बाप से ज्यादा,
लड़की के,
प्यार में, डूब, जावेगा।
वो प्यार तुझे,
माँ बाप से दूर, भगावेगा।
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इस लिये कहा, तू,
माँ बाप से गया, भाई।
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गुरूजी फिर बोले,
और जब, तेरे बच्चे
की, बारी, आई।
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तू, अपनी...............!,
जान से ज्यादा,
बच्चे को प्यार कर, जावेगा।
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बाज़ार में, गर्, अकेले तू,
कुछ ख़ाना, चाहवेगा।
तो, बच्चा तुझे, याद,
आ...................!, जावेगा।
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तू, कुछ भी, खा, नहीं, पावेगा।
बच्चे के ऊपर तू, दुनिया
की हर खुशी,
न्योछावर कर, जावेगा।
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तू, उसके प्यार में,
दुनिया के साथ,
साथ, अपने को
भी, भूल, जावेगा।
वो प्यार तुझे,
खुद से दूर, कर, जावेगा।
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इस लिये कहा तू,
अपने आप से
भी, गया, भाई।
शिष्य को ये बात,
अब समझ में, आई।
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गुरु के, ज्ञान की,गंगा में,
डुबकी भी,
आज़ उसने, लगाई।
धन्य हो गया, वो, आज़,
उसके जीवन में,
खुशियाँ, जो ढेर, आई।
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कहता है, राजेन्द्र.......!!!
"गुरु शिष्य" की......!
इस कथा से, दो बातों
का, मिलता, ज्ञान।
पहली है, गुरु महिमा,
और दूसरी है, प्यार के रुझान।
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पहली.......!, गुरु महिमा~
कहे राजेन्द्र..............!,
गुरु होते, बड़े ही ज्ञानी,
अज्ञान के, अँधेरे
को, दूर करते, ऐसे।
घोर अँधेरे में, कोई,
दीपक जला दे, जैसे।
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पोथी पढ़, पंडित बने,
गुरु बिन, मिले न, ज्ञान।
ज्ञान बिन, मुक्ति न मिले,
गुरु महिमा का,ये है, बखान।
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दूसरी.!, प्यार के रुझान~
कहे राजेन्द्र..............!,
प्यार के, अलग अलग,
रुझानों को, बताती।
अंत में, माँ बाप के,
प्यार को, समझाती।
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माँ बाप,अपने बच्चों से,
अपनी जान से,
ज़्यादा, करते, प्यार।
इस प्यार का,नहीं होता,
कोई आर, पार।
समुद्र से गहरा, और,
आसमान से ऊँचा,
होता उनका, प्यार।
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गुरु ने भी, शिष्य को,
ऐसी ही बातें,बताई, ज्ञान की।
वो तो हैं, बड़े ज्ञानी,
बातें करते, बड़े, काम की।
प्रेम से बोलो, जै श्री, राम की।
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कविता: राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता
404/13, मोहित नगर
देहरादून
सार्थक रचना
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