कविता: अपार धन सम्पदा
जग में अपार धन सम्पदा,
की लालसा तो,
सभी को, रहती है।
पर विरले ही होते वो,
जिनकी इच्छा ये,
राजेन्द्र, पूरी, होती है।
------------------------------ ------------------
राजेन्द्र की एक बात भी,
अब सुन लो,
जो है अज़ीबो, गरीब।
बात है ये उसके,
दिल के बहुत ही, क़रीब।
------------------------------ ------------------
एक लिमिट के बाद तो,
अपार दौलत भी,
पाने वाले के लिए,
मिट्टी समान ही, होती है।
अगली पीढ़ी के लिए ही ये,
इस्तेमाल करने को, होती है।
पीढ़ी ये तब आलसी,
व् घमंडी हो,
इस दौलत को,
शराब जुवे में, खोती है।
------------------------------ ------------------
मेरी इस बात में छिपे,
गूढ़ ज्ञान को, कोई,
लोभी कभी ना, जाने।
लेकिन मैंने तो कह दी,
ये सच्ची बात,
कोई माने या ना, माने।
------------------------------ ------------------
बुज़ुर्गों द्वारा कही,
एक बात भी,
राजेन्द्र ने तो,
कह दी कई कई, बार।
क़ि, संसार में, पैसों से,
ना खरीद सके,
सुख कोई,
और, दुःख का,
ना मिल सके, कोई, खरीदार।
------------------------------ ------------------
परस्पर, प्रेम भावना बनी, रहे।
हरि कथा भी होती, रहे।
पैसा चाहे कम, रहे।
------------------------------ ------------------
संतों का अपमान ना, हो।
बुराई, और बुरे लोगों का,
साथ ना, हो।
------------------------------ ------------------
देवता भी उस घर में तब,
निवास कर जाते, हैं।
धन सम्पदा,सुख शांति,
का वरदान भी तब,
वो दे जाते, हैं।
------------------------------ ------------------
पर नादान इंसान,
समझ नहीं पाता,
राजेन्द्र की ये बात, काम की।
परिवार को समय ना दे,
वो तो, धन सम्पदा,
पाने को ही समझे,
अपनी ड्यूटी सुबह, शाम की।
------------------------------ ------------------
एक लिमिट के बाद जो,
होवे मिट्टी समान,
धन सम्पदा तो,
कहलाती सिर्फ़, नाम की।
आज़ के लिए इतना ही,
बोलो जय सिया, राम की।
****************************** *
कविता: राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता
404/13, मोहित नगर
देहरादून
जग में अपार धन सम्पदा,
की लालसा तो,
सभी को, रहती है।
पर विरले ही होते वो,
जिनकी इच्छा ये,
राजेन्द्र, पूरी, होती है।
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राजेन्द्र की एक बात भी,
अब सुन लो,
जो है अज़ीबो, गरीब।
बात है ये उसके,
दिल के बहुत ही, क़रीब।
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एक लिमिट के बाद तो,
अपार दौलत भी,
पाने वाले के लिए,
मिट्टी समान ही, होती है।
अगली पीढ़ी के लिए ही ये,
इस्तेमाल करने को, होती है।
पीढ़ी ये तब आलसी,
व् घमंडी हो,
इस दौलत को,
शराब जुवे में, खोती है।
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मेरी इस बात में छिपे,
गूढ़ ज्ञान को, कोई,
लोभी कभी ना, जाने।
लेकिन मैंने तो कह दी,
ये सच्ची बात,
कोई माने या ना, माने।
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बुज़ुर्गों द्वारा कही,
एक बात भी,
राजेन्द्र ने तो,
कह दी कई कई, बार।
क़ि, संसार में, पैसों से,
ना खरीद सके,
सुख कोई,
और, दुःख का,
ना मिल सके, कोई, खरीदार।
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परस्पर, प्रेम भावना बनी, रहे।
हरि कथा भी होती, रहे।
पैसा चाहे कम, रहे।
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संतों का अपमान ना, हो।
बुराई, और बुरे लोगों का,
साथ ना, हो।
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देवता भी उस घर में तब,
निवास कर जाते, हैं।
धन सम्पदा,सुख शांति,
का वरदान भी तब,
वो दे जाते, हैं।
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पर नादान इंसान,
समझ नहीं पाता,
राजेन्द्र की ये बात, काम की।
परिवार को समय ना दे,
वो तो, धन सम्पदा,
पाने को ही समझे,
अपनी ड्यूटी सुबह, शाम की।
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एक लिमिट के बाद जो,
होवे मिट्टी समान,
धन सम्पदा तो,
कहलाती सिर्फ़, नाम की।
आज़ के लिए इतना ही,
बोलो जय सिया, राम की।
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कविता: राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता
404/13, मोहित नगर
देहरादून
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