बहू बेटी
लेडीज़ किट्टी पार्टी में, 2 औरतों
में चल रहा था, वार्तालाप लगातार।
ऐक ने दुसरे से पूछा..........!
कैसा है, तेरी बहू का व्यवहार।
बुरा है जी, लेट उठना..........!
बेटे से चाय बनवाना..........!
बाहर खाना खाना..........!
ऐसा बेकार है, उसका व्यवहार।
------------------------------ ----------------
और तेरा दामाद..........?
देवता है जी, बेटी को,
सुबह की चाय पिलाता.........!
बाहर खाना खिलाता.........!
नहीं करने देता, घर का कोई भी काम।
बेटी करती रहती, सारे दिन आराम।
------------------------------ ----------------
भगवान् सबको दे, ऐसा ही दामाद।
सबका घर भी, हो जाये आबाद।
******************************
कहे राजेन्द्र, ये तो हो गया जी कमाल।
रिश्ता ऐक, इच्छायें दो,
बिगड़ रहा, समाज का हाल।
मच रहा, बबाल ही बबाल।
------------------------------ ----------------
कौन करे इस समस्या का निवाकरण।
कैसे ठीक हो, रिश्ते की समीकरण।
------------------------------ ----------------
हर घर की कहानी, ऐसी ही होती।
बहू, अपनी भाभी से जो चाहती।
अपने लिए, वो नहीं अपनाती।
------------------------------ ----------------
सास ससुर तो, माँ बाप,
बनने को, रहते हमेशा तैयार।
पर बहू, बेटी बनने को, नहीं तैयार।
उस पर तो, बहू बने रहने,
का ही, भूत रहता सवार।
बहू के दिल से.........!
उसकी माँ के दिल तक.........!
मोबाइल से, जुड़े रहते तार।
आखिर माँ ही तो होती है, बेटी
के सब कार्यों की, सुत्रधार।
------------------------------ ----------------
राजेन्द्र को ऐसा, कुछ नहीं है भाता।
ऐसा सब कुछ, सुधर क्यों नहीं जाता।
------------------------------ ----------------
भगवान् शुद्ध करें, इनके विचार।
खुल जायें, इनकी अक्ल के द्वार।
------------------------------ ----------------
तभी तो, बात बनेगी काम की।
प्रेम से बोलो, जै श्री राम की।
*****************************
कविता: राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता
लेडीज़ किट्टी पार्टी में, 2 औरतों
में चल रहा था, वार्तालाप लगातार।
ऐक ने दुसरे से पूछा..........!
कैसा है, तेरी बहू का व्यवहार।
बुरा है जी, लेट उठना..........!
बेटे से चाय बनवाना..........!
बाहर खाना खाना..........!
ऐसा बेकार है, उसका व्यवहार।
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और तेरा दामाद..........?
देवता है जी, बेटी को,
सुबह की चाय पिलाता.........!
बाहर खाना खिलाता.........!
नहीं करने देता, घर का कोई भी काम।
बेटी करती रहती, सारे दिन आराम।
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भगवान् सबको दे, ऐसा ही दामाद।
सबका घर भी, हो जाये आबाद।
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कहे राजेन्द्र, ये तो हो गया जी कमाल।
रिश्ता ऐक, इच्छायें दो,
बिगड़ रहा, समाज का हाल।
मच रहा, बबाल ही बबाल।
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कौन करे इस समस्या का निवाकरण।
कैसे ठीक हो, रिश्ते की समीकरण।
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हर घर की कहानी, ऐसी ही होती।
बहू, अपनी भाभी से जो चाहती।
अपने लिए, वो नहीं अपनाती।
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सास ससुर तो, माँ बाप,
बनने को, रहते हमेशा तैयार।
पर बहू, बेटी बनने को, नहीं तैयार।
उस पर तो, बहू बने रहने,
का ही, भूत रहता सवार।
बहू के दिल से.........!
उसकी माँ के दिल तक.........!
मोबाइल से, जुड़े रहते तार।
आखिर माँ ही तो होती है, बेटी
के सब कार्यों की, सुत्रधार।
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राजेन्द्र को ऐसा, कुछ नहीं है भाता।
ऐसा सब कुछ, सुधर क्यों नहीं जाता।
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भगवान् शुद्ध करें, इनके विचार।
खुल जायें, इनकी अक्ल के द्वार।
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तभी तो, बात बनेगी काम की।
प्रेम से बोलो, जै श्री राम की।
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कविता: राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता